लेखनी कविता -जुड़वा भाई - बालस्वरूप राही

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जुड़वा भाई / बालस्वरूप राही धन्नु मन्नू जुड़वाँ भाई, मिलती-जुलती सूरत पाई। बिना दाँत के हँसते ही-ही, जैसे कोई बुढ़िया माई। एक खिलोना रखो बीच में, फिर देखो तुम हाथापाई। इन्हें ...

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